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बिकी हुई पत्रकारिता

ओपन हार्ट
ओपन हार्ट
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इक्कीसवी सदी में समाज के परिदृश्य में अर्थ आधारित साझेदारी,आर्थिक अनुबंधों पर टिके सम्बन्ध अपना विशिष्ठ स्थान रखते हैं.व्यक्ति का सामाजिक महत्व उसके ज्ञान, अच्छी शिक्षा और समाज के लिए उपयोगिता से ना होकर उसकी आर्थिक सुदृढता के आधार पर आँका जाने लगा है.पत्रकारिता जैसा बहुउपयोगी कार्य भी धीरे-धीरे अर्थ केन्द्रित होता चला जा रहा है जिससे समाज को अपूर्णीय क्षति होने की आशंका है.स्थानीय पत्रकार अपनी पत्रकारिता को लेकर राजनैतिक पक्षपात एवं निजी संबंधों से इस कदर प्रभावित हैं कि उनकी कलम की स्वतंत्रता और यथार्थ से दूर होती चली जा रही है.अधिकांश क्षेत्रीय पत्रकार समाचार पत्र के प्रमुख कार्यालय से निजी सम्बन्धों के आधार पर निर्भर हैं शेष अपनी छवि को भुनाने का प्रयास कर रहे हैं.
संबंधों और राजनीत से प्रेरित पत्रकारिता क्या समाज के न्याय दिलवाने में रूचि रखती है.कस्बाई पत्रकारों को धन देकर समाचार संपादित करवाना और आवश्यक समाचार को धन देकर नया मोड़ देना एक आम बात है,जबकि शीर्ष संपादक इस बात से अनभिज्ञ रहते हैं.स्थानीय पत्रकारों के पुलिस से बनते बिगड़ते सम्बन्ध क्षेत्रीय नेताओं से निजी सम्बन्ध, समाचारों को नियमित रूप से प्रभावित करते हैं.क्या पत्रकारिता समाज और समाचारों के साथ न्याय कर पायेगी और नहीं तो बड़े पत्रकारों के गहरे लेख परिवर्तन को कितनी तीव्रता दे पाएंगे?आर्थिक केन्द्रीकरण ने समाज के सर्वाधिक बुद्धिमान कहे जाने वाले वर्ग को बहुत प्रभावित किया है.

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प्रमुख समाचार पत्रों का समाज के प्रति सशक्त उत्तरदायित्व है. गरीब लाचार और मजबूर व्यक्ति के प्रति आखिर कोई तो संवेदनशील होगा फिर तो समाचार पत्र क्यों नहीं?हमारे पूर्व के पत्रकारों ने समाज की लड़ाई के लिए अपनी कलम को सशक्त हथियार बनाया था जो किसी भी परस्थिति में समझौता नहीं करते थे.
मेरा आज के पत्रकारों से विनम्र निवेदन है कि वो अपनी शक्ति को पहचाने और समाजं बदलाव कि दिशा में समाज का मार्ग प्रशस्त करें.

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