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स्वतंत्रता के स्वतंत्र मायने परतंत्रता और राजनैतिक लिप्सा के आईने में देखने को मजबूर आम भारतीय नागरिक कहाँ तक अपने हितों से लाभान्वित हो पा रहा है,मेरी नज़र में आज सबसे विचारणीय प्रश्न है.स्वतंत्र देश का परतंत्र मुखिया इस पंद्रह अगस्त को दस जनपथ रोड से दिए गए निर्देशों से अपने आप को स्वतंत्र कर ले ऐसी कामना के साथ एक सौ बीस करोड़ भारतीयों की सद्भावनाए उनके साथ हैं.बी बी सी की टिप्पड़ी कि डाक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री कार्यालय के उच्चतम कर्मचारी है यथार्थ ही प्रतीत होती है.मनमोहन सिंह जी के कार्यकाल में एक भी आम फैसला उनके द्वारा ऐसा नहीं लिया गया जो दस जनपथ रोड से निर्देशित ना हो फिर चाहे वो आंदोलनात्मक टिप्पड़ी हो या स्वतंत्रता दिवस का भाषण.
मुझे आशा ही नहीं अपितु विश्वाश है कि लाल किला से पड़ा जाने वाला भाषण भी जनपथ रोड से आता है.अब आप ही बताइए एक आम नागरिक की स्वतंत्रता दिवस पर मनोदशा कैसी होगी? मैं स्वतंत्र नहीं होना चाहता या मैं परतंत्रता के प्रति वचनबद्ध हूँ उतना ही जितना भारत के लाचार प्रधानमंत्री के दायित्व के प्रति,शायद हमारे मुखिया और उनके कर्मचारी ऐसा सोच रहे हों,या कई सालों से निर्देशों का पालन करते- करते उन की संवेदना भी यंत्रवत हो गयी है..
अब आप सब ही बताइए मैं अपने को आजाद कैसे मानूं जबकि देश की बागडोर गोरे अंग्रेजों से हट कर काले अंग्रेजों के बीच में आ गयी हो और विश्व के सब से बड़े लोकतंत्र राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले हमारे प्रधान मंत्री जी अपने को सार्वजनिक रूप से स्वतंत्र मानने में सक्षम न हो.काले अंग्रेजों की काले धन की कमाई विदेशी बैंको में फंसी हुई है वहीँ आम गरीब जनता बिजली, स्वास्थय, शिक्षा,और पानी से तबाह है.सुविधाए और आज़ादी उनकी जो जनता के तथाकथित सेवक हैं और जिन्होंने(आम जनता)उन्हें कमान दी शोषण उन सब का उनके सेवकों के द्वारा.तंगहाल, भुखमरी से संघर्ष कर रही आम जनता का मुखिया अपनी आज़ादी को लेकर संघर्षरत है तो हम सब किससे उम्मीद रखें….वन्देमातरम
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