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आलम आरा से जिस्म- 2 की लम्बी और उतार चढाव की दूरी तय करते करते भारतीय सिने जगत कहाँ से कहाँ तक पहुँच गया है.बात सिनेमा के स्तर के आंकलन की नहीं है बात है परोसे जाने वाली अधनग्न तस्वीरों की जिनसे कहानियों को सजाया जा रहा है. क्या ये सभी कहानियां इक्कीसवी सदी के विकोसोत्तर भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं या इनके माध्यम से सिर्फ और सिर्फ जनमानस की सेक्स इच्छाओं को उत्तेजित किये जाने का प्रयास है?विवाहोत्तर संबंधों की उलझी हुई प्रेम कथाएं, नायक एवं नायिका की अश्लील फिल्मांकन शैली ,उन्मादित अवस्था को दर्शाते सघन चुम्बन दृश्य क्या इन्ही सब प्रयासों से आम जनता को सिनेमा हाल तक खिंचा जा रहा है?पोर्न स्टार सनी लियोन का कामुक शारीरिक फिल्मांकन निश्चित रूप से जिस्म -2 का प्रमुख आकर्षण है जिसे विभिन्नमें टीवी चैनलों के माध्यम से प्रदर्शन तिथि के पहले दर्शाया जा रहा है.कहीं विवाहित नायिका की अतृप्त काम इच्छा प्रमुख आधार है तो कहीं भूत कथाये सेक्स रंग से रंगी अपने आप को प्रतिस्पर्धा में खड़ा कर रही हैं .
इमरान हासमी हाफ पोर्न स्टार हुए जा रहे हैं जो उनकी एक के बाद एक आती हुई फिल्मो से समझ में आ रहा है.भट्ट साहब और उनका परिवार निश्चित रूप से ऐसी फिल्मो को बनाने में महारथी है.सनी लियोन ने बाक़ी की कमी को अपने सहज प्रयास से पूरा कर दिया और भारतीय दर्शकों के सामने परोस दी गयी चटपटी सेक्स तड़का से भरपूर मसालेदार फिल्म,उधर डर्टी अभी धमाल मचा कर गयी ही थी क़ि राज-3 ने भी अपनी दस्तक दे ही डाली तो अब इन फिल्मो के इर्द गिर्द खड़ा आम दर्शक और भला क्या देखे जिससे वो प्रेरणा ले सके..
बहुत सा भारतीय दर्शक जो समाज सुधार की सामान्य अभिरुचियों से दूर है जिसके पास साहित्य पढने और समझने का समय नहीं है वे सब ही सिनेमा के माध्यम से लाभान्वित हो सकते है ,मनोरंजन के माध्यम से गंभीर सामाजिक समस्याओं को दर्शा कर और बहुउपयोगी चिंतन को एक बहुत बड़े वर्ग तक पहुँचाया जा सकता है,किन्तु क्या ऐसी पटकथाओं के माध्यम से ये संभव है?फिल्म जगत को अपने उत्तरदायित्व को समझना होगा वर्ना वो दिन दूर नहीं जब व्यावसायिक सिनेमा के नाम पर अर्ध नग्न फिल्मो की एक लम्बी सूची होगी जो केवल निम्न स्तरीय मनोरंजन ही दे पायेगी .
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