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क्षमा चाहता हूँ लेकिन मजबूर हूँ इसलिए लिखना पड़ रहा है,अन्ना आन्दोलन के विरुद्ध लेख लिखने वालों और एकपक्षीय टिपण्णी करने वाले तमाम लेखकों से मेरा अनुरोध है कि केवल आलोचना के लिए अव्यावहारिक पुस्तकीय ज्ञान और निराशापूर्ण चिंतन से बचें.आन्दोलन सामाजिक विकास की अत्यंत महत्वपूर्ण कड़ी है,इतिहास प्रमाण देता है आंदोलनों के निरन्तर होते रहने से उनमे तीव्रता और परिणाम पूर्ण प्रवत्ति आती है.हम में से कितने लोगों ने किसी भी सामाजिक आन्दोलन में प्रत्यक्ष सहभागिता की? अगर नही की तो निराधार तरीके आलोचन क्या तर्क संगत है?एक बंद कमरे में बैठ कर वातान्कूलित वातावरण में लेख लिखना बहुत आसन है या चाय की चुस्कियां लेते हुए अपना मत देना बेहद आसन है हमें इन सब से बचना होगा.भाइयों आज समाज में तीव्र अलख जगाने की ज़रुरत है एकसाथ सकारात्मक होकर तानाशाह ताकतों के खिलाफ तीव्र बिगुल फूकने की आवश्यकता है.
शायद अन्ना का आंदोलनात्मक तरीका इतना विज्ञानं सम्मत ना हो, किन्तु निष्पक्ष रूप से देखिये क्या कोई और भी तरीका था? और था तो हम में से किसी मनीषी ने आज तक पहल क्यों नहीं की ?पहले का आन्दोलन सफल हुआ कि नही ये तर्क का विषय नहीं मुद्दा ये हैं कि इस अग्नि को अपने प्रयास से ज्वाला मुखी कैसे बना सकते हैं?हम सब को जी हाँ हम सभी को एकसाथ आगे आना होगा और पूछना होगा उन पदासीन तानाशाहों से कि संयुक्त राष्ट्र कौन जाये और क्यों?
सभी क्षेत्रीय मुद्दे सभी आपसी विवाद एवं धार्मिक वैमनस्यता से ऊपर उठकर राष्ट्र यज्ञ में कुछ ना कुछ आहूत करना होगा.राष्ट्र भ्रष्टाचार से खोखला हुआ जा रहा है काले अंग्रेजियत के ये लोग जिनके खाते में करोडो भारतीयों की मेहनत और खून पसीने की कमाई विदेशों में जमा है इनको आड़े हाथों लेना होगा..आइये एक साथ खड़े होकर अन्ना के आन्दोलन में आपना सहयोग दें…..वन्दे मातरम
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