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तख्त या तख्ता..नरेन्द्र मोदी

ओपन हार्ट
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gujrat2

हम सब पर ये उपकार करें
खुलकर उनका प्रतिकार करें
जो राष्ट्र धर्म के भक्षक है
क्योंकर उनको स्वीकार करें

तख्त या तख्ता कि राजनीत में फंसे नरेन्द्र मोदी अपने चिर परचित अंदाज़ से तब अलग नज़र आये जब उन्होंने नयी दुनिया उर्दू पत्रिका के संपादक और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी से अपनी चिर्प्रितिक्षित वार्ता की.नरेन्द्र मोदी जी प्रदेश की राजनीत से निकलकर देश की राजनीत में अपना हाथ आज़माना चाहते है और ये वार्ता उन के जिस्म पर सच्चे या झूठे खूनी दागों को धोने की देर और बहुत देर से की गयी पहल है.प्रश्न ये है कि क्या मोदी जी के लिए तत्कालीन निर्णय राजधर्म से प्रेरित थे अथवा गोधरा कांड से आहत एकपक्षीय हिन्दू शासक कि विचारधारा थी ?.मुस्लिम विरोधी नीतियों के कारण चर्चा में आये नरेन्द्र मोदी जी पर सदैव हिन्दूगत राजनीत करने का व कट्टरपंथी होने का आरोप रहा है.

gujrat

एक व्यक्ति जब साधारण से ऊपर उठता है तो उसे सदैव ऐसे निर्णय लेने चाहिए जो समाज में आदर्श स्थापित कर सके और अन्य सामान्य जन उसका पालन कर सके,ना कि वर्षों बाद अपने किये कार्यों के प्रति राजनैतिक एवं अघोषित क्षमा के लिए याचना करना.हिन्दू धर्मं की प्रमुख विशेषता सहिष्णु होना भी है शायद मोदी जी यह मूल सिद्धांत भूल गए थे . प्रधान मन्त्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने अपने तत्कालीन दौरे में इस घटना की मौन निंदा भी की थी,एवं मोदी जी को राजधर्म निर्वाह करने की सलाह भी दी थी.
ऐसे राष्ट्रव्यापी मुद्दे को सौ छेदों की चलनी कांग्रेस भी भुनाने में लगी है,क्या राष्ट्रीय पार्टियाँ हमेशा देश की जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करती रहेंगी ?क्या समाज इनका जोरदार प्रतिकार कभी नहीं करेगा?.मोदी जी पहले ये स्पष्ट करें कि प्रधानमंत्री के तख़्त या फांसी के तख्ता के बीच में उनका उनका मुद्दा क्या है.?
वन्दे मातरम

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