मैं कब…
सख्त निगाहें
मुश्किल राहें
बंद जुबां से
आप बयां से
स्वप्न समेटे
मन के बेटे
मजबूरी पर
मजदूरी कर
सपने बेचे;
आँखें मीचे
कहते माँ से
मैं कब पदने जाऊँगा
खुद अरमां चुन पाऊँगा
………
उन ढाबों पर
बर्तन धोकर
बचपन खोया
जीवन रोया
ठिठुर ठिठुर कर
सर्दी सहकर
भूखे रहकर
चुप चुप कहकर
चाय बांटते
हँसते जाते
कहते खुद से
मैं कब…………..
Read Comments