ओपन हार्ट
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क्यों इतना मुझे सताती हो
…….
हैं नैन सजल
मन है व्याकुल
मेरा संयम
फिर हुआ विफल
नित स्वप्नों में आ जाती हो
क्यों इतना मुझे सताती हो
…….
मैं हूँ मधुकर
तुम पुष्प मधुर
चुम्बन करने दो
रक्त अधर
निर्झर सी झरती जाती हो
क्यों इतना मुझे सताती हो
…….
छत पर चढ़कर
पीछे मुड़कर
नज़रें फेरीं
मुझसे लड़कर
रोती हो और रुलाती हो
क्यों इतना मुझे सताती हो
…….
आ भी जाओ
ना तरसाओ
ये आवेदन मत ठुकराओ
मैं ‘दीपक’ हूँ तुम बाती हो
क्यों इतना मुझे सताती हो….
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