ओपन हार्ट
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मैं हूँ अनाथ निर्धन बच्चा
सीधा सादा भूखा सच्चा
क्यों जन्मा मुझको पता नहीं
भूखीं रातें हैं सता रहीं
जब जग दीवाली मना रहा
सारा घर-आँगन सजा रहा
कोई मुझको अपना कह दो
उस दिन पूरा खाना दे दो
…..
कब से भरपेट नहीं खाया
कुछ भी रूखा सूखा पाया
त्यौहारों में पकवानों की
मीठे से भरे दुकानों की
खुश्बू आती है रह रह कर
मैं सो जाता हूँ कह कह कर
मुझको भी दो दाना दे दो
इक दिन पूरा खाना दे दो
…..
मेरी दीवाली कब होगी
इक फुलझडि़या मुझ पर होगी
इक रसगुल्ला बनवा लेना
दीवाली पर मुझको देना
जो चाहो वो करवा लेना
चारा-सानी, झाड़ू-पोछा
झूठे बरतन धुलवा लेना
जो मन आये ताना दे दो
इक दिन पूरा खाना दे दो
…..
मैं हूँ अनाथ निर्धन बच्चा
कोई मुझको अपना कह दो..
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