ओपन हार्ट
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मुझे भी छापिए मैं युवा बेरोजगार हूँ
कवि हूँ लोगों की नज़र में बेकार हूँ
निर्धन ही सही कुछ मेरी भी पहचान है
क्या आप की नज़र में पुराना अखबार हूँ?
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पूछते हैं लोग कवि हो और क्या करते हो
क्या कविता खाकर ही अपना पेट भरते हो
आप बताएँ क्या कवि होना इतना आसान है
मैं गरीबों का भूखा पेट, नंगी चीत्कार हूँ
क्या आप की नज़र में पुराना अखबार हूँ?
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स्वतंत्रता की रोटी का मेरा हिस्सा किधर है
करोंड़ों के पैकेज में मेरा किस्सा किधर है
मैं नंगे पैर ही सही आसमान पर उड़ सकता हूँ
मैं विचारों का धन और कविता का व्यापार हूँ
क्या आप की नज़र में पुराना अखबार हूँ?
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नहीं पास मेरे संपादकों जैसी महंगी एसी कार
पैदल बेच रहा हूँ अनमोल कविता हर बाज़ार
क्यों मुझे प्रकाशन भवन में घुसने की नही इज़ाजत
मैं भूखी बेरोज़गारी का नवीनतम समाचार हूँ
क्या आप की नज़र में पुराना अखबार हूँ?
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