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प्रस्तुत प्रेमिल प्रणाम हूँ तेरी शरण में!

ओपन हार्ट
ओपन हार्ट
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durga

शुभगे शोभामयी शाश्वती शुभ ललिता

विश्व उद्धारिणि, हरण कर जन आकुलता

प्रचण्ड, प्रकाशमयी प्रज्जवलित शत रवि सी

सर्वज्ञ, सर्वोपस्थित, स्वर्ण वर्ण छवि सी

आभूषित नक्षत्र रत्न बन तन पर

शोभित उद्धीपित आभा अणु अणु पर

दुष्टात्मा,दैत्य दानव खल मारण कर

अदभुत, अविस्मरणीय रूप धारण कर

कंचनवत कान्तिवान जगमग भू अम्बर

आलोकित आभा छिटक रही नभ पर

स्नेहिल, स्निग्ध शान्त दृष्टि हम सब पर

ममतामयी, माता, मोहित, नभ-थल-जलचर

वंदित मानव, सुर से विस्तृत त्रिभुवन में

कोटिक कंठ आर्तनाद करते एकल स्वर में

दयामयी देवि दृष्टि कर कण कण में

प्रस्तुत प्रेमिल प्रणाम हूँ तेरी शरण में!

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