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मेरी कविता नहीं छपेगी अख़बारों में
मैं निर्धन कवि बिक जाता हूँ चौबारों में
मंचों पर जाकर कविता सम्बोधित करना
नहीं भाग्य में मेरे: गाता हूँ – यारों में
मेरी कविता नहीं छपेगी अख़बारों में
……….
छंद अर्थ से रहित काव्य पूजा जाएगा
गद्यात्मक पद्यों में कवि कविता गायेगा
शब्द विमुख होकर, उन्मुक्त प्रवाहित होंगे
सार हीन साहित्य बिकेगा बाज़ारों में
मेरी कविता नहीं छपेगी अख़बारों में
…………
धनवानों की कविता का संपादन होगा
महँगे कवियों का उठकर अभिवादन होगा;
उनका काव्य पुरस्कृत होगा,धन बरसेगा
जिनका मिलना जुलना होगा सरकारों में
मेरी कविता नहीं छपेगी अख़बारों में
………
मुझको हीन दृष्टि से अक्सर देखा जाता
मेरी कविता पढकर उसको फेका जाता
संपादक कविता पढकर मुझको समझाते
जाओ कविता छापो घर की दीवारों में
मेरी कविता नहीं छपेगी अख़बारों में
………
कैसे बन पायेगा कोई पन्त,निराला
नहीं दिखा कोई मुझको प्रोत्साहन वाला
आप लिखूं मैं, आप पढूं अपनी ही कविता
क्यों जन्मा कवि ऐसे निर्धन परिवारों में
मेरी कविता नहीं छपेगी अख़बारों में
मैं निर्धन कवि बिक जाता हूँ चौबारों में.
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