ओपन हार्ट
- 87 Posts
- 260 Comments
वर्षा ऋतु में मंद पवन से
प्रेमयुक्त आनन्दित मन से
पुरवइया के मधुर चलन से
कहता हूँ उनसे कह देना
याद किया है
………….
झूम झूम कर वर्षा ऋतु से
अस्तांगत रवि,चंद्र उदित से
विरह राग की व्याकुल धुन से
कहता हूँ उनसे कह देना
याद किया है
…………….
जल आप्लावित हर सावन से
आते जाते मन भावन से
साँझ ढले उस नील गगन से
कहता हूँ उनसे कह देना
याद किया है
…………
प्रथम छंद की प्रथम पंक्ति से
प्रथम दिवस की प्रथम संधि से
श्वास-श्वास से, ग्रंथि-ग्रंथि से
कहता हूँ उनसे कह देना
याद किया है ………..
Read Comments