ओपन हार्ट
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क्यों सताती है मुझे ये दो समय की भूख..?
मैं सब के सामने गिड़गिड़ाया
कभी हँसकर कभी रोकर बिताया
हर इक बाजार,हर मन्दिर में जाकर
मैं भूखा, घूँट पीकर- गीत गाया
मेरी आँखे मुझसे मुस्कराकर पूँछती है
कि क्यों सताती है मुझे ये दो समय की भूख?
…
दूर हट.! ये- सभी कहते है मुझसे
मेरा इक पाँव है जाऊँ मैं किससे
अभी कुछ चंद सिक्के मिल गये हैं
कटे से हैं कुछ, कुछ-इक नये हैं
मेरी हर साँस मुझसे पूँछती है
कि क्यों सताती है मुझे ये दो समय की भूख ?
…
मेरी आँखों से अब दिखता नहीं है
मुसाफिर कोई अब टिकता नहीं है
मैं आहट सुन के सब को रोकता हूँ
हर इक आवाज़ को मैं टोकता हूँ
मेरी बूढ़ी कहानी पूँछती है
कि क्यों सताती है मुझे ये दो समय की भूख..?
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