ओपन हार्ट
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प्रिये तुम्हारे मधुर मिलन ने
मेरे अन्दर मन-मन्दिर में
प्रेम राग का गीत सुनाया
ऐसा अवसर कभी न आया
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हृद तंत्री वीणा पर तुमने
स्वर रचना आरोहित स्वर में
पंचम मध्यम षडज दिखाया
ऐसा अवसर कभी न आया
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शान्त पवन थी मन उद्वेलित
दिवा स्वप्न में स्वप्निल जीवित
प्राण शेष थे मूर्छित काया
ऐसा अवसर कभी न आया
…
उन्हीं क्षणों की स्मृति लेकर
पुनः मिलन की आस लगाकर
नव चिन्तन नव जीवन पाया
ऐसा अवसर कभी न आया
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